लेखनी प्रतियोगिता -29-Nov-2021
दैनिक काव्य-कविता प्रतियोगिता
मां ओ मां
रह गयी सिर्फ मैं-ओ-मैं।।
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मां ओ मेरी मां
फिर से अपने आंचल की छांव में सुला दो ना
बहुत उदास है ये मन फिर से लोरी गाके थपका दो ना
मां ओ मेरी मां
फिर से अपने कलेजे से चिपटा लो ना
बहुत दर्द है सीने में फिर से अपने प्यार भरी मलहम लगा दो ना
मां ओ मेरी मां
फिर से वही छोटी गुड़िया बना अपने आंगन में खेलने दो ना
फिर से बाबा की गोदी में चढ़ पूरे आंगन-घर का चक्कर लगवा दो ना
मां ओ मां
फिर से अपने हाथों बना हलवा-पूडी़ खिला दो ना
फिर से अपने बने पकवानों से भूख की महक जगा दो
मां ओ मां
फिर से अपने साज-श्रंगार से हाथों में चूड़ी, ओठों पर लाली लगाने दो ना
फिर से अपनी साड़ी ओढा नन्हीं गुड़िया बना खिलखिलाने दो ना
मां ओ मां
ये सब तो अब मैं खुद से खुद भी करती हूं
पर कहां खुद को तुम्हारी वो प्यारी गुड़िया सी महसूसती हूं
मां ओ मां
अब तुम्हारी वो गुडिया जिम्मेदारियों में कहीं खो गयी है
मां ओ मां दर्द बहुत हो रहा है
तू सुनती क्यूं नहीं,, कहां और किस जहां में जाके चिर निद्रा में सो गयी है
मां ओ मां
क्यूं मुझको इस दुनिया में तन्हां-अकेला सहने को छोड़ गयी है
किससे कहूंगी अब अपने दिल की मैं
क्या अब तुमसे सिर्फ यादों में ही मिलूंगी मैं
बोलो एक बार बोलो एक बार तो अपनी आंखें खोलो
हाथ तुम्हारा पकड़ के तुम्हारे साथ ही अभी इसी वक्त
तुम्हारे साथ ही अनंत यात्रा पर चल दूंगी मैं
पर सच कहती हूं तुम्हारे बिन हंस कर एक पल भी न जी सकूंगी मैं
मां ओ मेरी मां
मां ओ मेरी मां
खाली हो गया मेरा जहां
तेरी शरण से पार कर जाती थी हर इम्तिहान
आज इस सबसे बड़े इम्तिहान को कैसे पार कर पांऊगी मैं
बेजान सी बस अब अंसुवन की चिता से लिपट जाती हूं मैं।।
प्ररतियोगिता हेतुत
Zakirhusain Abbas Chougule
01-Dec-2021 12:10 AM
Nice
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Swati chourasia
29-Nov-2021 06:38 PM
Very beautiful and heart touching 👌👌❤️❤️
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Ridima Hotwani
29-Nov-2021 09:12 PM
Thank you 😊🙏
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